Kisan Andolan:एक कृषि प्रधान देश होने क बावजूद भी भारत के किसान और सरकार में तालमेल की कमी है, इसका एक मुख्य कारण MSP पे कानून ना होना भी है। किसानो की यही मांग है की इसपर कानून और 2004 में बने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में एमएसपी को लेकर जो सिफारिशें थी उन्हें लागू करा जाये।
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MSP क्या है जिसे लेकर हो रहा है किसान आंदोलन | Kisan Andolan?
MSP (Minimum support price / न्यूनतम समर्थन मूल्य) का मतलब है वह न्यूनतम मूल्य जिस पर सरकार किसानों से फसल खरीदती है।
MSP स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य?
फसलों की MSP स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य है किसानों को बंपर उत्पादन वाले वर्ष में फसलों की कीमतों में गिरावट के खिलाफ बीमा करना और उन्हें नुकसान से बचाने में मदद करना। दरअसल, फसल की बुआई के दौरान ही फसलों की कीमत तय कर दी जाती है और यह तय कीमत से कम में बाजारों में नहीं बिकती है। MSP तय होने के बाद बाजार में फसलों की कीमत गिरने के बाद भी सरकार किसानों को तय कीमत पर ही फसलें खरीदती है। सरल शब्दों में कहें तो, एमएसपी किसानोंके लिए उनकी फसलों का निश्चित सुनिश्चित मूल्य।
किन फसलों पर निर्धारित है MSP?
भारत सरकार 23 फसलों के लिए साल में दो बार एमएसपी निर्धारित करती है।
- 7 अनाज– ज्वार, बाजरा, धान, मक्का, गेहूं, जौ और रागी
- 5 दाल– मूंग, अरहर, चना, उड़द और मसूर
- 7 तिलहन– सोयाबीन, कुसुम, मूंगफली, तोरिया-सरसों, तिल, सूरजमुखी, और नाइजर बीज
- 4 कमर्शियल फसल– कपास, खोपरा, गन्ना और कच्चा जूट
कैसे और कौन तय करता है MSP?
केंद्र सरकार ने किसानों की फसलों को उचित कीमत दिए जाने के उद्देश्य से साल 1965 में “कमीशन फॉर एग्रीकल्चर कॉस्ट एंड प्राइसेस” (CACP) का गठन किया था, यह हर साल रबी और खरीफ फसलों के लिए MSP तय करती है।
ये संस्था एमएसपी तय करते समय इन बिंदुओं पर ध्यान देती है कि फसल के लिए उत्पाद की लागत क्या है, इनपुट मूल्यों में कितना परिवर्तन आया है, बाजार में मौजूदा कीमतों का क्या रुख है, मांग और आपूर्ति की स्थिति क्या है, अंतरराष्ट्रीय मूल्य स्थिति क्या है।
हालांकि, देश में एमएसपी को लेकर कोई कानून नहीं है और किसानो की यही मांग है की इसपर कानून और 2004 में बने स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में एमएसपी को लेकर जो सिफारिशें थी उन्हें लागू करा जाये।
क्यों बना स्वामीनाथन आयोग?
MSP पर कोई कानून ना होने के कारण किसानो और सरकारों के बिच में हमेशा से मतभेद रहे हैं। 2004 में UPA सरकार ने इसी समस्या का हल निकलने के लिए एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई जिसका नाम था ‘नेशनल कमीशन ऑन फार्मर्स’, इसका मुख्य उदेश्य था किसानो की समस्या का हल निकालना। आयोग ने किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए कई सारी सिफारिशें की थीं, इसमें एमएसपी को लेकर भी सिफारिश की गई थी।
MSP निकालने के लिए तीन प्रमुख सूत्र
MSP का वास्तविक मूल्य फसल उत्पादन की लागत [cost of production (CoP)] की गणना करने के लिए प्रयोग में लाये गये मेथड पर निर्भर करती है।
सरकार ने MSP निकालने के लिए तीन प्रमुख सूत्रों का विवरण दिया है वो ये हैं:
- A2: फसल के उत्पादन में किसान द्वारा की गई लागत। इसमें कई इनपुट शामिल हैं जैसे कि बीज, उर्वरक, कीटनाशक, पट्टे पर दी गई भूमि, किराए पर लिया गया श्रम, मशीनरी और ईंधन पर व्यय।
- A2+FL: किसान द्वारा की गई लागत और पारिवारिक श्रम का मूल्य
- C2: एक व्यापक लागत, जो A2+FL लागत और स्वामित्व वाली भूमि का अनुमानित किराये का मूल्य और निश्चित पूंजी पर ब्याज, पट्टे पर दी गई भूमि के लिए भुगतान किया गया किराया है।
MSP पर स्वामीनाथन आयोग का फॉर्मूला v/s मौजूदा CACP का फॉर्मूला
स्वामीनाथन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में ये सिफारिश करी थी की किसी भी फसल की MSP उस फसल की व्यापक लागत यानि C2 ka 1.5 गुना होनी चाहिए।
वहीँ पर CACP की 2023-2024 की रिपोर्ट के मुताबिक MSP अखिल भारतीय औसत [cost of production (CoP)] के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर तय किया गया था, लेकिन वह इस लागत की गणना A2+FL के 1.5 गुना के रूप में करती है।
ऊपर A2+FL और C2 फॉर्मूले के आधार पर विभिन्न फसलों के लिए रबी मार्केटिंग सीजन (RMS) 2024-25 के लिए उत्पादन की अनुमानित लागत दी गई है।
अगर हम उदाहरण के तोर पे गेंहू के फसल की msp दोनों फॉर्मूलों से अंतर निकाले तो 353 rs प्रति क्विंटल आता है।
निष्कर्ष
एक कृषि प्रधान देश होने क बावजूद भी भारत के किसान और सरकार में तालमेल की कमी है, इसका एक मुख्य कारण MSP पे कानून ना होना भी है।
किसान हमेशा से यही कहते आये है की उन्हें अपनी फसलो का सही मूल्य नहीं मिलता, वो स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशो पर फसल की व्यापक लागत यानि C2 का 1.5 गुना MSP को लागू कर क़ानूनी गारंटी चाहते है।
और सरकार कह रही है की वो लागत पर 1.5 गुना पहले से दे रही है तथा स्वामीनाथन आयोग के C2 का 1.5 गुना फॉर्मूले पर एमएसपी देने और इसकी गारंटी का कानून लाने पर सरकार पर लाखों करोड़ रुपये का खर्च बढ़ेगा। अनुमान है कि अगर की गारंटी का कानून आता है तो सालाना 10 लाख करोड़ रुपये का खर्च बढ़ जाएगा।
दोनों ही पक्ष अपनी जगह पर कहीं न कहीं सही भी है। सरकार और किसानो को आपस में बातचीत कर इस समस्या का कोई ठोस हल निकालना चाहिए ।