Navratri vrat katha

Navratri vrat katha

1.कथा की सुरुआत


बृहस्पति जी बोले- हे ब्रह्मा जी ! आप अत्यंत बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन, माघ और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवान ! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो। बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे हे बृहस्पति ! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण को ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार में पड़ा हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम विपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकार उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या के इस व्रत के करने से पुत्र हो जाता है। समस्त पापों को दूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन-सा मनोरथ है जो सिद्ध नहीं हो सकता।


यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्रि व्रत की कथा श्रवण करे। हे बृहस्पते ! जिसने पहले इस महाव्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी के वचन सुनकर बृहस्पति जी ॐ बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों को कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहा, मैं सावधान होकर सुन ॐ रहा हूं। आपकी शरण आए हुए मुझ पर कृपा करो। ब्रह्मा जी बोले- पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मानों ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या पैदा हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुए इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्ल पक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था। उस समय वह भी नियम से वहाँ उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन ‘में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री ! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और जय माता दी जय माता दी दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा । इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिता जी! मैं आपकी कन्या हूँ। मैं आपके सब तरह से आधीन हूँ, जैसी आप की इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है, मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है।

मनुष्य न जाने कितने मनोरथों को चिन्तन करता है पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है। जो जैसा करता है उसको फल भी उस कर्म के अनुसार ही मिलता है, क्योंकि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल देव के अधीन है। जैसे अग्नि में पड़े हुए तृण दी उसको अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर ॐ दिया और अत्यंत क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर क्या करती है?

इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति अपने मन में विचार करने लगी कि अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुःख का विचार करती हुई वह सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयानक वन में कुशायुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनोवांछित फल देने वाली हूं। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्राह्मणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुई हो, यह सब मेरे लिए कहा और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दासी को कृतार्थ करो। ऐसा ब्राह्मणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं आदि शक्ति हूँ और मैं ही ब्रह्मा, विद्या और सरस्वती हूँ। मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों को दुःख दूर कर उसको सुख प्रदान करती हूँ। हे ब्राह्मणी ! मैं तुम पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ।

तुम्हारे पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनाती हूँ सुनो! तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और अति पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद ने चोरी की चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ लिया और ले जाकर जेलखाने में कैद कर दिया। उन लोगों ने तेरे को और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न जल ही पिया। इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया। हे ब्राह्मणी! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हें मनोवांछित वस्तु दे रहीं हूँ तुम्हारी ॐ जो इच्छा हो सो माँगो इस प्रकार दुर्गा के कहे वचन सुनकर ब्राह्मणी बोली कि अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो हे दुर्गे ! आपको प्रणाम करती हूँ। कृपा करके मरे पति के कोढ़ को दूर करो। देवी कहने लगी कि उन दिनों में जो तुमने व्रत किया था उस व्रत के एक दिन का पुण्य अपने पति का कोड़ दूर होने के लिए अर्पण करो मेरे प्रभाव से तेरा पति कोढ़ से रहित और सोने के समान शरीर वाला हो जायेगा। ब्रह्मा जी बोले इस प्रकार देवी का वचन सुनकर वह ब्राह्मणी बहुत प्रसन्न हुई और पति को निरोग करने की इच्छा से ठीक है. ऐसे बोली। तब तक उसके पति का शरीर भगवती दुर्गा की कृपा से कुष्ठ हीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया जिसकी कान्ति

के सामने चन्द्रमा की कान्ति भी क्षीण हो जाती है। वह ब्राह्मणी पति की मनोहर देह को देखकर देवी को अति पराक्रमी वाली समझकर स्तुति करने लगी कि हे दुर्गे ! आप दुर्गत को दूर करने वाली तीनों जगत् का सन्ताप हरने वाली, समस्त दुःखों को दूर करने वाली, रोगी मनुष्य को निरोग करने वाली, प्रसन्न होने पर मनोवांछित वस्तु को देने वाली और दुष्ट मनुष्य का नाश करने वाली हो। तुम ही सारे जगत की माता और पिता हो। हे अम्बे! मुझ अपराध रहित अबला की मरे पिता ने कुष्ठ के साथ विवाह कर मुझे घर से निकाल दिया। उसकी निकाली हुई मैं पृथ्वी पर घुमने लगी। आपने ही मेरा इस आपत्ति रूपी ‘समुद्र से उद्धार किया है। हे देवी! आपको प्रणाम करती हूँ। मुझ दीन की रक्षा करो। ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! इसी प्रकार उस सुमति ने मन से देवी की बहुत स्तुति की, उससे की हुई स्तुति सुनकर देवी को बहुत सन्तोष हुआ और ब्राह्मणी से कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! तुम्हारे उदायल नाम का एक अति बुद्धिमान, धनवान, कीर्तिवान और जितेन्द्रिय पुत्र शीघ्र ही होगा। ऐसा ॐ कहकर वह देवी उस ब्राह्मणी से फिर कहने लगी कि हे ब्राह्मणी और जो कुछ तेरी इच्छा हो वही मनोवांछित वस्तु तुम माँग सकती हो ऐसा भगवती दुर्गा का वचन सुनकर सुमति बोली कि हे भगवती दुर्गे! अगर आप मेरे पर प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे नवरात्रि विधि बताइए। हे दयावती! जिस विधि से नवरात्र व्रत करने से आप प्रसन्न होती हैं उस विधि और उसके फल को मेरे लिए विस्तार से वर्णन करें। इस प्रकार ब्राह्मणी के वचन सुनकर दुर्गा कहने लगी कि हे ब्राह्मणी! मैं तुम्हारे लिए सम्पूर्ण पापों को दूर करने वाली नवरात्र व्रत विधि को बतलाती हूँ।

जिसको सुनने से तमाम पापों से छूटकर मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नौ दिन तक विधि पूर्वक व्रत करें यदि दिन भर का व्रत न कर सके तो एक समय का भोजन करें। पढ़े-लिखे ब्राह्मणों से पूछकर घट स्थापना करें और वाटिका बनाकर उसको प्रतिदिन जल से सींचें महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती की मूर्तियां बनाकर उसकी नित्य विधि सहित पूजा करें और पुष्पों से विधि पूर्वक अर्घ्य दें। बिजौरा के फूल से अर्घ्य देने से रूप की प्राप्ति होती है। जायफल से कीर्ति दाख से कार्य की सिद्धि होती है। आंवले से सुख और केले से भूषण की प्राप्ति होती है। इस प्रकार फलों से अर्घ्य देखकर यथाविधि हवन करें। खांड, घी, गेहूं, शहद, जौ, तिल, बिम्ब, नारियल, दाख और कदम्ब इनसे हवन करें। गेहूँ होम करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है खीर व चम्पा के पुष्पों से धन और पत्तनों से तेज और सुख की प्राप्ति होती है। आँवले से कीर्ति और केले से पुत्र हो। कमल से राज सम्मान और दुखों से सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है। व्रत करने वाला मनुष्य इस विधान से होम कर आचार्य को अत्यंत नम्रता के साथ प्रणाम करे और यज्ञ की सिद्धि के लिए उसे दक्षिणा दे। इस महाव्रत को पहले बताई हुई विधि के अनुसार जो कोई करता है उसके सब मनोरथ सिद्ध हो जाते हैं इसमें तनिक भी संशय नहीं है इन नौ दिनों में जो कुछ दान आदि दिया जाता है, उसका करोड़ों गुना फल मिलता है। इस नवरात्रि के व्रत करने से ही अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। हे ब्राह्मणी! इस सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाले उत्तम व्रत को तीर्थ मंदिर अथवा घर में ही विधि के अनुसार करें, ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते! इस प्रकार ब्राह्मणी को व्रत की विधि और फल बताकर देवी अंतर्ध्यान हो गई जो मनुष्य या स्त्री इस व्रत को भक्ति पूर्वक करता है वह इस लोक में सुख पाकर अन्त में दुर्लभ मोक्ष को प्राप्त होता है। है बृहस्पते! यह दुर्लभ व्रत का माहात्म्य मैंने तुम्हारे लिए बतलाया है। ऐसा ब्रह्मा जी के वचन सुनकर बृहस्पति जी आनन्द के कारण रोमांचित हो गए और ब्रह्मा जी से कहने लगे- हे ब्रह्मा जी ! आपने मुझ पर अति कृपा की जो अमृत के समान इस नवरात्रि व्रत का माहात्म्य सुनाया। हे प्रभो! आपके बिना और कौन इस माहात्म्य को सुना सकता है? ऐसे बृहस्पति जी के वचन सुनकर ब्रह्मा जी बोले कि हे बृहस्पते तुमने सब प्राणियों का हित करने वाले इस अलौकिक व्रत को पूछा है इसलिए तुम धन्य हो। यह भगवती शक्ति संपूर्ण लोकों का पालन करने वाली है, इस महादेवी के प्रभाव को कौन जान सकता है।

By fyi

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